August 31, 2014

क्या होगा जो...

लगता तेरा कारवाँ कुछ उठता हुआ सा है, मुझको।
तुझको है इंकार मग़र...
तुझसे बढ़कर शायद, अब मैं जान गया हूँ तुझको।

नदी, हवाएं, पँछी  और बादल, कब रोके से रुकते हैं
सैलानी तुझ से ये सारे, भोर भए चल उठते हैं;


न आह कोई, और न कोई आँसू रोक तुझे अब पायेगा।
बस इतना वादा देते जाना, न लौट इधर फिर आएगा।

न आँसू मेरे, और न ये बाहें, बस अब बढ़कर रोकेंगे तुझको;
लगता तेरा कारवाँ कुछ उठता हुआ सा है, मुझको।

क्या होगा जो फिर एक बार चला तू जाएगा;
कुछ यादें नई नई सी, कुछ कविताएँ दे जाएगा।

August 23, 2014

ख्वाब था शायद, ख्वाब ही होगा

यादोँ के उस मौसम से,
कोई आया, मेरे पास में बैठा।
एक पुराना गीत वो लाया, और वही पुरवाई भी,
नज़र को थामे नज़रो से उसने, बीती बातें दोहराईं भी।

साँझ की बेला, और हम दोनोँ,
और मन में वही शहनाई सी।
मेरी बात सुनी भी उसने, अपनी बात सुनाई भी।
यादोँ के उस मौसम से,
कोई आया,मेरे पास में बैठा! 

आज पुराना यादोँ का मौसम, बरसा, मैं मुस्काई भी।
आँख झपकते मैनें पाया फिर वही तनहाई  थी!
ख़ाली था घर का हर कोना, और
वही ग़म की घटा सी छाई थी। 
वक्त  के शीशे से गर्द सी उड़कर 
याद चली कोई आयी थी!

ख्वाब था शायद, ख्वाब ही होगा
यादोँ के उस मौसम से,
कोई आया, मेरे पास में बैठा।

एक ज़माना था कुछ ऐसा दिल में बजी शहनाई थी
यादोँ के उस मौसम में ,
कोई आया था, मेरे पास था बैठा
नज़र को थामे नज़रो से उसने, दिल की बात सुनाई थी
नज़र को थामे नज़रो से उसने, दिल को राह दिखाई थी।

ख्वाब था शायद, ख्वाब ही होगा
यादोँ के उस मौसम से,
कोई आया, मेरे पास में बैठा।